स्वास्थ्य पत्रकारों के लिए हो प्रशिक्षण की व्यवस्था, बिना तथ्यों के खबर प्रसारित करने से बचे मीडिया

भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में स्वास्थ्य पत्रकारिता पर हुई परिचर्चा।

इंदौर : एम्स अस्पताल नई दिल्ली की डॉक्टर शेफाली गुलाटी का कहना है कि स्वास्थ्य पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है । इस पत्रकारिता में समाचार को सनसनी बनाने के बजाय लोगों सही जानकारी देकर उनकी गलतफहमियां दूर की जानी चाहिए।
डॉ. शैफाली इंदौर के रवींद्र नाट्यगृह में स्टेट प्रेस क्लब मध्य प्रदेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय पत्रकारिता महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन ‘स्वास्थ्य पत्रकारिता’ पर रखी गई परिचर्चा में अपने विचार रख रही थी।

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए प्रशिक्षण बहुत जरूरी है । ताकि वह हकीकत समझ कर लिख सकें । अमेरिका में एक एसोसिएशन है जो कि इस तरह के प्रशिक्षण को रेगुलेट करता है।

तथ्यों की पड़ताल कर खबर प्रकाशित करें मीडिया।

उन्होंने राजस्थान में एक महिला डॉक्टर द्वारा सुसाइड किए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि मीडिया बिना तथ्यों को जाने खबर प्रकाशित और प्रसारित कर देता है।इलाज के दौरान मरीज की मौत का सारा दोष अक्सर डॉक्टर पर मढ दिया जाता है जबकि मरीज को कई अन्य बीमारियां भी होती हैं, जो उसकी मौत का कारण बनती हैं। ऐसी स्थिति में मीडिया को तथ्यों की जानकारी लेकर सही बात लोगों तक पहुंचानी चाहिए।

बदलती जीवन शैली और प्रदूषण बढा रहें बीमारियां।

देश के युवाओं में शराब , सिगरेट और ड्रग का नशा बढ़ रहा है । मोबाइल के रेडिएशन के प्रभाव से हम वाकिफ नहीं हैं । कोरोना के संक्रमण काल में जंक फूड ज्यादा खाने से बच्चों में मोटापा आने लगा है जो आने वाले कल में मरीज के रूप में सामने आ सकते हैं । गलत लाइफस्टाइल के कारण ही युवाओं को हार्टअटैक हो रहे हैं।

पूर्वाग्रह के साथ न लिखें खबर।

इंदौर में सेंट्रल लैब की संचालिका डॉ विनीता कोठारी ने कहा कि डॉक्टर, पुलिस और प्रेस इन तीनों की सेहत पर एक समान रूप से खतरा है । यह तीनों ही अपने काम में समय को नहीं देख पाते हैं । पिछले दिनों हमारे द्वारा की गई जांच में यह पाया गया है कि इन तीनों वर्ग के 37 प्रतिशत से लेकर 47 प्रतिशत तक व्यक्ति शुगर, हार्टअटैक, प्रोटीन कम होना जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं । स्वास्थ्य क्षेत्र के क्षेत्र में लिखी जाने वाली खबर को पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर नहीं लिखा जाना चाहिए ।

स्वास्थ्य की खबरों का असर व्यापक होता है।

दिल्ली के डॉक्टर स्वदीप श्रीवास्तव ने कहा कि 1996 मैंने यह देखा कि अखबारों में स्वास्थ्य के लिए कोई निश्चित रिपोर्टर नहीं था । इसके बाद हमारे द्वारा लगातार कोशिश की गई और पिछले सालों में जो कोरोना का संक्रमण आया, उसका परिणाम यह निकला कि अब हर अखबार में स्वास्थ्य के रिपोर्टर निश्चित हो गए हैं । दूसरे विभागों की खबरों के बजाय स्वास्थ्य पर लिखी गई खबर का असर 7 गुना ज्यादा होता है । जरूरी यह है कि स्वास्थ्य के पत्रकार को कम समय में ज्यादा खबर लाने का दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए । उसे रिसर्च करने और खबर लिखने के लिए समय दिया जाना चाहिए ।

खबर के जरिए भय न फैलाएं।

रिलायंस फाउंडेशन की कम्युनिकेशन हेड जयश्री बालासुब्रमण्यम ने कहा कि अच्छी खबर को बनाने दिखाने और समझने में वक्त लगता है । स्वास्थ्य पत्रकारिता का मकसद लोगों को डराना नहीं होना चाहिए। हमें लोगों के स्वास्थ्य के नजरिए से खबर को प्रस्तुत करना चाहिए । उसे सनसनीखेज नहीं बनाया जाना चाहिए । पिछले सालों में हुए कोरोना के संक्रमण ने यह बता दिया कि लोगों के व्यवहार में परिवर्तन किस तरह से आता है ।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर आरके जैन , घनश्याम पटेल, अनिल तिवारी , रचना जोहरी, प्रदीप जैन, मानवेंद्र सिंह, सोनाली यादव ने किया । कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर संजीव नाईक ने किया ।

विषय प्रवर्तन मुंबई के विवेक अग्रवाल ने किया । स्टेट प्रेस क्लब मध्य प्रदेश के बारे में जानकारी अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने दी । पत्रकारिता महोत्सव के बारे में जानकारी संयोजक सुदेश तिवारी ने दी । अंत में आभार प्रदर्शन नवनीत शुक्ला ने किया ।

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