ओंकार पर्वत को मूल स्वरूप में रखने की मांग को लेकर इंदौर में 10  मई से तीन दिवसीय धरना

10 मई से इंदौर कमिश्नर को ज्ञापन सौंपकर रीगल पर देंगे तीन दिनी धरना।

12 मई से शुरू होगी पदयात्रा और ओंकारेश्वर में करेंगे सत्याग्रह।

इंदौर : ओंकारेश्वर तीर्थ हिंदुओं की आस्था का एक बड़ा केंद्र है। नर्मदा की धारा के मध्य में स्थित ओंकार पर्वत साक्षात शिवस्वरूप है। सरकार द्वारा उस पर्वत पर आदि शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित करने के लिए पर्वत के हजारों पेड़ों की कटाई कर पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचाई जा रही है। यही नहीं पर्वत में जेसीबी चलाकर उसके स्वरूप के साथ भी छेड़छाड़ की जा रही है। इसे बचाने हेतु विगत डेढ़ माह से भारत हितरक्षा अभियान संस्था द्वारा हस्ताक्षर अभियान पूरे प्रदेश में चलाया जा रहा है, जिसमें सरकार से मांग की गई है कि बह इस प्रोजेक्ट पर पुनर्विचार करें और पेड़ों की कटाई व पर्वत पर तोडफ़ोड़ तुरंत बंद करें। आदि शंकरचार्य की मूर्ति और संग्रहालय किसी अन्य स्थान पर स्थापित किया जा सकता है। बने। अभी तक लगभग एक लाख हस्ताक्षर इस अभियान के समर्थन में हो चुके हैं।

10 मई को कमिश्नर को सौंपेंगे ज्ञापन, रीगल पर देंगे धरना।

भारत हितरक्षा अभियान के अभय जैन और स्वप्निल जोशी ने बताया की ओंकार पर्वत को बचाने के लिए 10 मई को सुबह 10 बजे रीगल चौराहे पर सभी एकत्रित होकर 11 बजे इंदौर कमिश्नर को ज्ञापन सौंपेंगे। इसके पश्चात रीगल चौराहे पर 3 दिन धरना दिया जाएगा। 12 मई को शाम 6 बजे धरना स्थल से ओंकारेश्वर के लिए पदयात्रा शुरू होगी जो तीन मार्गों से ओंकारेश्वर पहुंचेगी। इस दौरान 9 पड़ावों पर रुकते हुए कार्यकर्ताओं द्वारा जनजागरण किया जाएगा। 16 मई की रात को पदयात्रा ओंकारेश्वर पहुंचेगी। 17 और 18 मई को ओंकारेश्वर में सत्याग्रह किया जाएगा।

पर्वत के मूल स्वरूप को कायम रखा जाए।

जैन और जोशी ने बताया कि हमारी शासन-प्रशासन से मांग है कि ओंकारेश्वर मां नर्मदा, की गोद में बसा स्वयं प्रकट पर्वत है, जो शिव स्वरूप माना जाने के कारण पूरी दुनिया के लिए पूज्यनीय है। लोग इसकी पैदल परिक्रमा करते हैं, इसलिए इसके प्राकृतिक स्वरूप में तोडफ़ोड़ कर इसे खंडित न किया जाए। पर्वत के नीचे पवित्र ज्योतिर्लिंग है तथा आदि शंकराचार्य महाराज के गुरु गोविंदपाद की तपोभूमि है। भगवान और गुरु से ऊपर पर्वत की चोटी पर आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करना धर्म संगत नहीं है। अत: प्रतिमा को अन्य निरापद स्थान पर स्थापित किया जाए। शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले शब्द की ध्वनि ओंकार पर्वत से होने के कारण इसे ओम पर्वत कहा जाता हैं और वहां विराजमान शिव को ओंकारेश्वर कहते हैं। इसी वजह से यह जगह हिंदुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। इसका मूल स्वरूप बरकरार रखा जाना चाहिए।

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